Sunday, May 18, 2008

सज्जनता और मूर्खता के बीच कम होता फासला

मैं किसी काम से नगर निगम के क्षेत्रीय कार्यालय गया हुआ था। क्षेत्रीय अधिकारी से चर्चा करते समय ऑफिस में एक चेहरे से ही सीधे साधे लगने वाले शिक्षित युवक ने प्रवेश किया। उसने क्षेत्रीय अधिकारी को नमस्ते बोला और क्षेत्रीय अधिकारी के जवाब के इंतजार में एक तरफ खड़ा हो गया। क्षेत्रीय अधिकारी ने उसके नमस्ते के जवाब में सिर तक नहीं हिलाया और न ही उससे कोई प्रश्न किया बल्कि मुझसे चर्चा में व्यस्त रहे। पास ही एक बैंच तथा कुछ कुर्सियां पड़ी हुई थीं परंतु क्षेत्रीय अधिकारी ने न उससे बैठने को कहा और बिना कहे ना वो बैठा।

करीब दस मिनिट तक भी जब क्षेत्रीय अधिकारी ने उससे ये नहीं पूछा कि वो कौन है, क्या चाहता है तो मुझे बेचैनी सी हुई और मैंने उनसे कहा कि पहले आप इनकी बात सुन लें ये क्या चाहते हैं ?

``हां बोलो।´´ क्षेत्रीय अधिकारी ने उस युवक की तरफ एक उड़ती सी निगाह डालते हुये कहा।´´

``सर!´´ वो सभ्यता से बोला,``मेरी गली की सीवर लाइन जाम हो गई है। तीन दिन से बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मेहरबानी करके आप उसे ठीक करा दें।´´

``एप्लीकेशन लाये हो।´´ क्षेत्रीय अधिकारी बोला। ``हां सर।´´ उसने हस्तलिखित एक शिकायत पत्र क्षेत्रीय अधिकारी को थमा दिया।

``तुम जाओ।´´ क्षेत्रीय अधिकारी बोला,``मैं देखता हूं।´´

``सर कब तक हो जायेगी ठीक।´´ वो बोला,``और एप्लीकेशन की रिसीव मुझे मिल जाती तो ´´

``हो जायेगी एक दो दिन में,´´ क्षेत्रीय अधिकारी को गुस्सा आ गया,``और तुमको रिसीव चाहिये या सीवर ठीक करानी है।´´

``नहीं-नहीं।´´ वो युवक जल्दी से बोला,``आप तो सीवर ठीक करा दीजिये।´´ और फिर वह युवक ऑफिस से चला गया।

हम फिर बातों में व्यस्त हो गये तभी चेहरे से ही अनपढ़ तथा अशिक्षित लगने वाले दो युवकों ने ऑफिस में प्रवेश किया। एक ने क्षेत्रीय अधिकारी के सामने रखी एक कुर्सी खींची और उस पर पसर गया। दूसरा वहीं रखी बेंच पर बैठ गया। क्षेत्रीय अधिकारी ने मुझसे बात करना बंद कर उससे तुरंत पूछा,``क्या बात है ?´´

``क्या खाक बात है।´´ कुर्सी पर बैठा युवक उद्दंडता से बोला,``किस बात की तनख्वाह लेते हो तुम लोग। हमारी गली में सीवर लाइन पूरी तरह चौक पड़ी है, जगह जगह गंदगी फैली हुई है और तुम यहां बातें मटोल रहे हो।´´

``एप्लीकेशन लाये हो।´´ उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुये क्षेत्रीय अधिकारी बोला।

``काहे की एप्लीकेशन।´´उस युवक की आवाज तेज हो गई। सीवर साफ करने एप्लीकेशन जायेगी। ये तुम्हारा काम है तुम्हारे वार्ड में कहां कहां क्या गडबड है उसे देखो और ठीक करो।´´

क्षेत्रीय अधिकारी को क्रोध आ गया,``तुम जानते हो मैं एक अधिकारी हूं और तुम्हें गुंडागदीZ के इल्जाम में बंद करवा सकता हूं।´´

``सुन वे,´´ वो युवक अभद्रता पर उतर आया। ``कितने दिन के लिये मुझे बंद करवायेगा,एक दिन, दो दिन उसके बाद तुझे कत्ल करूंगा और दस साल के लिये जाना पसंद करूंगा।´´

उसके बाद क्षेत्रीय अधिकारी के कस बल निकल गये। उसने तसल्ली से उस युवक को बैठने के लिये कहा। तुरंत बाहर आवाज लगाकर कर्मचारियों को बुलाया और उस युवक की समस्या का समाधान करने के लिये साथ भेज दिया।

मैं भी वहां से उठ आया लेकिन मेरे मन में ये प्रश्न बार बार कौंध रहा था कि ये कैसा जमाना आ गया है जहां सज्जन व्यक्ति को मूर्ख समझा जाता है और उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता जबकि दुर्जन की आवाज तुरंत सुन ली जाती है।

Wednesday, April 30, 2008

``क्या आप ``क्या लिखें´´ की समस्या से ग्रस्त हैं

यह पोस्ट उन ब्लॉगरों के लिये नहीं है जो धड़ाधड़ छप रहे धुरंधर लिक्खाड़ों की श्रेणी में आते हैं क्योंकि उन पर या उनकी अकल्पनीय लेखन क्षमता पर ईश्वर मेहरबान है। ये पोस्ट तकनीक पर लिखने वाले ब्लॉगरों के लिये भी नहीं है क्योंकि उनके पास एक निश्चित विषय होता है और तकनीक पर लिखने वाले उंगलियों पर गिनने लायक हैं शायद इसलिये उनको ये डर नहीं होता कि कोई उनसे पहले अपना माल बाजार में ले आयेगा। ये पोस्ट तो मेरे जैसे नितिन व्यास के शब्दों में भोंदिजीवियों के लिये है जो ``क्या लिखूं´´ पर सिर खुजाने में ही पूरा दिन या पूरी रात निकाल देते हैं।मेरा तो ख्याल है कि ये समस्या शायद हर ब्लॉगर को कभी न कभी परेशान करती ही रहती होगी। जब भी लिखने बैठते हैं तो कम से कम एक सवाल तो खड़ा हो ही जाता है ``क्या लिखें´´।

क्या समाचार समीक्षा लिखें

इस विषय पर तो आप खूब लिख सकते हैं, खुल कर लिख सकते हैं परंतु यहां भी या तो ``ब्रेकिंग न्यूज´´ सुनते ही तुरंत लिखें, ये सोचे बिना लिखें कि ब्रेकिंग न्यूज कुछ घंटों बाद न्यूज बनेगी भी या नहीं क्योंकि थोड़ा सा लेट होते ही आपसे पहले आपकी सोच से मिलता-जुलता माल बाजार में भारी तादाद में आ भी चुका होगा। जबकि मेरी राय ये है कि इस विषय पर ना ही लिखें क्योंकि समाचार ही सुनना पढ़ना है तो कोई क्यों ब्लॉगों पर अपनी आंखें फोड़ेगा।

तो क्या साहित्यक रचनायें....

अगर आपके मन में कविता, कहानी, व्यंग्य या और कोई साहिित्यक रचना का विचार आ रहा है तो अति उत्तम परंतु सिर्फ आपके लिये आपके ब्लॉग की रेटिंग के लिये नहीं क्योंकि उन्हें आप ही लिखेंगे और आप ही वाचेंगे। इस समस्या को रवि रतलामी जी रचनाकार में जाहिर भी कर चुके हैं।

कुछ ब्लॉगर दूसरे साथी ब्लॉगरों की खिल्ली उड़ाते हुये कुछ लिख...

ना...ना... मैं तो ऐसी सलाह बिलकुल नहीं दूंगा क्योंकि ऐसे लेखन के लिये आपके लेखन से कहीं अधिक आपका वजनदार होना आवश्यक है नहीं तो किसी की खिल्ली उड़ाने के चक्कर में कहीं आपका ब्लॉग ही न उड़ जाये।

रवि रतलामी जी, समीरलाल जी, अनूप शुक्ल जी जैसा लेखन...

यदि आप समझते हैं कि आप इन या इन जैसे और सुपरहिट ब्लॉगरों जैसी काबलियत रखते हैं (कम से कम मुझ में तो नहीं है) तो शौक से लिखिये परंतु इतना याद रखें कि इनके विषय जरा हट के होते हैं और ये ब्लॉगिंग के सचिन तेंदुलकर हैं, लता मंगेशकर हैं, अमिताभ बच्चन हैं। हम जैसे ब्लॉगर इनके द्वारा बनाये गये व्यंजनों की खुश्बू से इनके यहां नहीं जाते बल्कि इनके यहां रोज जाकर देखते हैं कि आज क्या बना है और उसका स्वाद कैसा है। यदि आप भी ऐसे ही अनोखे व्यंजन बनाने की सोच रहे हैं तो सावधान! कहीं स्वयं ही सारे न खाना पड़ जायें।

तो आखिर क्या...क्या... लिखें

बस यही वो सवाल है जिसे सोचते-सोचते मैं तो लिख गया आप भी सोचिये कुछ तो लिख ही जायेगा।

Wednesday, April 23, 2008

अब पैदा होंगे पाकिस्तान में भी असली नेता


अभी-अभी नवभारत टाइम्स में खबर पढ़ी कि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 17 और 25 के तहत नेशनल और प्रांतीय असेम्बली का चुनाव लड़ने के लिये ग्रेजुएशन की अनिवार्यता को खत्म कर अनपढ़ लोगों को भी चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है। हमें तब पता लगा कि पाकिस्तान के इतने हालात खराब होने के पीछे असली कारण उनके सभी राजनीतिज्ञों का पढ़ा लिखा होना है। अरे भाई इतनी सी बात इतनी देर बाद समझ में आई, एक निगाह हमारी तरफ डाल ली होती तो अपने आप समझ में आ गया होता कि हम अपने किन पहलवानों की बदौलत राजनीति के अखाड़े में ताल ठोकते हैं। राजनीति कोई हंसी खेल है, चिट्ठे लिखने जैसा आसान काम है जो कम्प्यूटर खोला और पटापट टाइप करते चले गये। राजनीति में दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ता है दिमाग भी आला दर्जे का जिसे बचपन से बचा कर रखना पड़ता है। अब ग्रेजुएशन करने के लिये बचपन से पढ़ाई में दिमाग लगाना पड़ेगा तो खत्म तो हो ही जायेगा। अब थोड़े से बचे हुये दिमाग से राजनीति करने की बोलो तो हो गई राजनीति।
हमारे यहां भी पहले अधिकतर राजनेता पढ़े लिखे ही हुये। बताओ क्या वो सही हालात समझ पाये थे देश का। उनको न तो भ्रष्टाचार करना आता था और ना ही जाति धर्म की बात करके लोगों को लड़ाना। फिर धीरे धीरे हमने अपने यहां अनपढ़ लोगों को नेता बनाने का प्रयोग किया देखो भ्रष्टाचार कैसा फलफूल रहा है, फिर चारों तरफ जाति धर्म की बातें सुलगाकर राजनीति की रोटियां सेंकी गई, अब जब ये मुद्दे ठंडे होने लगे तो भाषा और क्षेत्रवाद की लड़ाईयां जारी हो गई। बताओ क्या ये सब काम पढ़े लिखे नेताओं के बस की बात है क्या।
हमने अपने यहां कभी भी पढ़ाई की जरूरत राजनीति के लिये नहीं समझी और देखो कैसे पूरे विश्व में हमारा ढंका बज रहा है। चलो देर से आये लेकिन दुरूस्त आये।

Wednesday, April 16, 2008

चमचा गिरी के भी कुछ उसूल होते हैं जनाब

इतना बड़ा नेता हमेशा ही तो फ्री नहीं होता है कि पार्टी में हो रहे हर फेरबदल की जानकारी उसे हो. अगर कांग्रेस पार्टी ने पुराने नियम कायदों को बदल दिया और उसकी जानकारी वरिष्ठ नेताओं को नहीं दी तो इसमें हमारे अर्जुन सिंह जी की क्या गलती है. उन्हें तो वही पुराने नियम मालूम है. और उन्हीं को क्या सभी पुराने कांग्रेसियों को उन्हीं नियमों की जानकारी है. अब भइया कोर्स बदल गया है तो उसकी जानकारी सार्वजनिक तो की ही जानी चाहिए थी. लो देखो हम तो सिर्फ अर्जुन जी की ही गलती समझ रहे थे यहाँ तो करूणानिधि जी, प्रणव मुखर्जी तक को जानकारी नहीं थी. काफी दिनों बाद थोड़ा सा समय इन लोगों को मिला था तो उसका इस्तेमाल उन्होंने राहुल गाँधी को प्रधान मंत्री के रूप में पेश करने की बात कह कर किया. जमाना ख़राब आ गया है अर्जुन जी, आजकल सीधी बात भी कोई पसंद नहीं करता. आश्चर्य की बात ये है की सदियों पुरानी परम्परा को कैसे कोई इतनी आसानी से खत्म कर सकता है. मुगलों के ज़माने में सबसे अधिक चापलूसों की ही चलती थी. इस मामले में अंग्रेज भी किसी से पीछे नहीं रहे. कांग्रेस का जमाना आया तो सभी जानते हैं कि चमचा गीरी का क्या आलम था. जिस काम को करते करते हमें जमाना हो गया हो उसके बारे में अचानक ये फरमान कि चमचागीरी नहीं चलेगी. ज्यादती है भाई. अब ये तो सोनिया जी नहीं कह सकतीं कि राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाना ही नहीं चाहतीं. हाँ ये हो सकता है कि उनकी एंट्री जरा सलीके से हो. फिर ये कोई वक्त भी तो नहीं था ऐसी बात उछालने का अभी तो महंगाई वैसे ही दम लिए ले रही है. इस समय तो अपने मनमोहन जी ही ठीक है. उन्हें सब झेलने कि आदत है. और हाँ अर्जुन जी आप एक बात तो भूल ही गए मनमोहन जी हर तरह की बात मान जाते हैं राहुल थोड़े ही हर बात मानने वाले है. अब जब आदत हो ही गई है तो कुछ समय तो और हुकुम चला लेने दो फिर पता नहीं मौका मिला ना मिला. अब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को इतनी मांग अवश्य करनी चाहिए कि और कोई संशोधन यदि पार्टी के परम्परा गत नियमों में हो चुके हों और अभी सार्वजनिक नहीं किए गए हों तो उन्हें जरुर सार्वजनिक कर दिया जाए क्या पता कल किसी और के साथ दुर्घटना हो जाए. फिर भी सोनिया जी को बधाई देर आए दुरुस्त आए. कारण चाहे जो हों कुछ समय के लिए ही सही कुछ तो सुधार आएगा. लगे हाथ मायावती जी और हमारी अनुशासित पार्टी भाजपा भी ऐसा ही फरमान जारी कर दें तो कुछ समय के लिए चमचागीरी निलंबित हो जाए. खत्म होने का तो प्रश्न ही नहीं है सदियों से खून पसीना दे देकर सींचा है हमने चमचागीरी की फसल को.

Friday, April 11, 2008

काबिल व्यक्ति ही क्यों अधिक परेशान होते हैं

विद्वान् अक्सर यह कहते देखे जाते हैं की कर्महीन व्यक्ति ही भाग्य के भरोसे रहते हैं और कर्मयोगी अपना भाग्य स्वयं banate हैं. हो सकता है यह बात सौ फीसदी सही हो किंतु प्रश्न यह उठता है कि कोई व्यक्ति कर्महीन होता ही क्यों है? वो कारण कौन से हैं जो एक व्यक्ति को कर्महीन होने को मजबूर करते हैं और दूसरे को कर्मयोगी? दूसरा महत्तवपूर्ण प्रश्न यह है कि क्यों कोई व्यक्ति कर्महीन का कलंक जानबूझकर अपने माथे पर चस्पा करना चाहता है?
जबाव मिलता है "आलसी है, कुछ करने का प्रयत्न करता ही नहीं है."
बात सही है, परन्तु सिर्फ आलसी होना ही किसी व्यक्ति के कर्महीन होने के लिए पर्याप्त नहीं होता अगर होता भी है तो ऐसा उसके स्वभाव के कारण होता है और अपना स्वभाव बदलना प्राणी के हाथ मैं नहीं होता.
यहाँ मेरा प्रयास किसी व्यक्ति को कर्म न करने के लिए प्रोत्साहित करना नहीं है बल्कि यह समझाना भर है कि जन्मजात स्वभाव को एक निश्चित समय आने से पहले बदलना मनुष्य के हाथ में नहीं होता.
"अजगर करे ना चाकरी" अजगर के स्वभाव को व्यक्त करती है, सांप कोबरा भी होता है, सांप अजगर भी होता है, ना कोबरा अजगर का स्वभाव ग्रहण कर सकता है ना ही अजगर कोबरा जैसा बन सकता है.
हम सभी जानते हैं कि इश्वर ने हमें सब कुछ प्रदान करने के बाद भी सारा नियंत्रण अपने हाथ में रखा है. कुछ ज्ञानी कहते हैं कि स्वभाव नाम कि कोई चीज़ नहीं होती, मनुष्य यदि अपने अन्दर दृढ निश्चय पैदा कर ले तो वह असंभव को सम्भव कर सकता है. जब उनकी ज्ञान वाणी दृढ निश्चयी सुनता है तो वह प्रसन्न हो जाता है परन्तु अनिश्चय कि स्थति में हरदम फंसा रहने वाला दूसरा व्यक्ति यह तुरंत मान लेता है कि उसकी असफलता के पीछे वास्तव मई उसकी अस्थिर चित्त प्रवृति ही है वह दृढ निश्चय करता है कि वह अपने स्वभाव में परिवर्तन लाएगा और जो भी करेगा दृढ निश्चय से करेगा परन्तु ऐसा कभी नहीं हो पता. थोड़ा सा समय बीतते ही उसकी पुरानी दिनचर्या प्रारम्भ हो जाती है क्योंकि स्वभाव में परिवर्तन लाने के लिए जिस दृढ निश्चय कि आवश्यकता थी वह उसमें होती ही नहीं.
कितने आश्चर्य कि बात है कि हम अपने हिसाब से किसी भी व्यक्ति के बारे में उसके सफल असफल होने कि धारणा बना लेते हैं जबकि हम जानते हैं कि बिना इश्वर की इच्छा के कुछ नहीं होता. बिडम्बना ये है कि जिसके हिस्से में खुशियाँ आती हैं, जो परमपिता कि असीम अनुकम्पा से, प्रकृति की खास नज़रे इनायत से भाग्यवान होता है वाही मनुष्य "ना शुक्रा" हो जाता है. जिसे इश्वर 'इज्ज़त, दौलत, ताकत से नवाज्ता है वो मनुष्य कहता है कि मैंने यह सब अपनी बुद्धि, अपनी मेहनत से अपनी काबिलियत से बनाया है. वो कहता है कि भाग्य कि बात तो कमज़ोर लोग करते हैं. वहीं भाग्यहीन व्यक्ति हमेशा इश्वर को याद करते रहते हैं उनका कहना होता है कि उनका भाग्य ही खराब है जिस वजह से वो काबिल होते हुए भी कुछ कर नहीं पा रहे.
कहा जाता है कि माता-पिता की सबसे लाडली संतान ही माता पिता को अधिक गालियाँ देती है और यही वे भाग्यवान लोग करते हैं.

Sunday, April 6, 2008

क्यों सच नहीं होती भविष्य वाणियाँ

अक्सर देखा जाता है की विद्वान् भविष्य वाणियाँ करते हैं कुछ तो आजकल अनेक टीवी चेनलों पर कर रहे हैं परन्तु अधिकतर सत्य नहीं हो पातीं। मैं ये नहीं कहता कि वे लोग काबिल नहीं हैं मैं ये भी नहीं कहता कि उनको अपने विषय का ज्ञान नहीं है। परन्तु कुछ तो ऐसा होता है कि वे लोग असफल हो जाते हैं। उस असफलता के पीछे कहीं उनका अहम् तो नहीं। शायद हाँ! मैंने अक्सर देखा है कि इश्वर की व्यवस्था में आवश्यकता से अधिक दखल अंदाजी काबिल व्यक्ति को भी नाकाबिल बना देती है। जब भी कोई भविष्य वक्ता अपनी बात को कहता है तो उसकी कोशिश होती है कि बात सत्य होने पर उसको पूजा जाए। उस का पूरा श्रेय सिर्फ उसे ही दिया जाए और शायद यहीं आकर वो इश्वर के कोप का भाज़न बन जाता है। पिछले कुछ समय में मैंने कई लोगों कि टीवी चैनलों पर की गई भविष्य वाणियाँ को ग़लत होते देखा है। मुझे लगता है कि यदि वे लोग इश्वर कि कृपा अपने साथ लेकर चलें तो हो सकता है कि उनको इस तरह असफल ना होना पड़े।

विधा कोई भी ग़लत नहीं होती गलती उसे जानने समझाने वालों की होती है। गलती हमारी होती है, हम इश्वर की भेंट की गई नियामतों को अपनी खोज मानने लगते हैं। हमारा अहम् इतना प्रबल हो जाता है कि हम अपने आपको सर्व शक्तिमान समझने कि भूल कर बैठते हैं। और शायद उसी समय हमारा सम्पर्क इश्वर से कट जाता है जिसका परिणाम बिश्वश्नियता से की गई भविष्य वाणियों पर पड़ता है और वे असत्य हो जाती हैं।

चमत्कार होते हैं हो सकते परन्तु लेकिन बिना इश्वर की मरजी के नहीं, हमें चमत्कारों की आशा करनी chaahiye परन्तु इश्वर पर भरोसा कर के, जहाँ भी "मैंने किया है आ जाएगा कैसा भी चमत्कारिक व्यक्ति आम व्यक्ति हो जाएगा। एक टीवी चैनल पर भारत ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट मैच के पहले बहुत नामचीन भविष्य वक्ता ने बताया की ऑस्ट्रेलिया जीतेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि करोड़ों लोगों के saamane कही गई उस बात मैं aham था। aaiye ham mehnat करें isvar पर bharosa rakhain or फिर चमत्कार की aasha करें.